गर्भगृह- मॉं कामाख्या मंदिर के गर्भगृह में मॉं कामाख्या देवी की प्रतिमा विराजमान है। मॉं की प्रतिमा के दाहिनी तरफ लक्ष्मी जी की प्रतिमा स्थापित है। मॉं की प्रतिमा के नीचे चरण-पादुका एवं नीचे साक्षत योनीमंडल स्थापित है। मॉं के प्रतिमा के बायीं तरफ पहले सरस्वती मॉं की प्रतिमा विराजमान थी परन्तु किसी कारण वश उसे वहां से हटा दिया गया। चॅादी के छत्र के नीचे विराजमान् मॅाँ कामाख्याँ देवी का दर्शन पा कर भक्त अपने सारे कष्टो से मुक्ति पा जाता है और मॉं की आराधना कर भक्त मॉंं की परिक्रमा करता है।
मॉं दुर्गा का मंदिर – गर्भगृह के दाहिनी तरफ एक गुफा नुमा मंदिर में मॉं दुर्गा की प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर में भक्त अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए अखंड द्वीप जलाते हैं।
बरामदा – गर्भगृह के बायी तरफ दुर्गा माता के मंदिर से सटा हुआ एक बड़ा बरामदा है। इस में बैठ कर भक्त अपना पाठ एवं पूजन करते हैं। चारो तरफ से खुले हुए बड़े से बरामदे के सामने एक झूला भी लगा हुआ है। बरामदे में सावन व नवरात्रि के समय विभिन्न पूजन अनुष्ठान होते हैं।
पूजन कक्ष – माँ के भवन के सामने एक कक्ष का निर्माण कराया गया है। भजन-कीर्तन, अखंड पाठ जाप-सिद्धिया प्राप्ति हेतु पूजन धार्मिक आयोजन इस कक्ष में किये जाते है। नवरात्रि में पूरे नौ दिन दुर्गापाठ एवं अन्य पूजन कार्यक्रम होते हैं।
मॉं काली एवं भोले शंकर का मंदिर- गर्भगृह के बायीं तरफ गुफानुमा मंदिर में मॉं काली एवं भगवान शंकर का साक्षात निवास है। इस मंदिर का निर्माण मंदिर के सुन्दरीकरण के समय कराया गया था।
हवनकुंड- गर्भगृह के सामाने हवनकुड़ बना हुआ है। जिसमें पूरे वर्ष अग्नि जलती रहती है।नवरात्रि के नवमी को हवन करने वाले भक्तों कीइतनी भीड़ होती है कि गर्भगृह के सामने मैदान में भक्तों को बैठ कर हवन पूजन करना पड़ता है।
मन्नत का पेड़ – मॉं कामाख्या के गर्भगृह के ठीक सामने एक नीम का पेड़ है, जिससे मन्नत का पेड़ कहा जाता है। भक्त अपनी परेशानीयों एवं समस्या दूर करने के लिए माता से प्रार्थना करते हुए मन्नत का धागा बॉंधते हैं, और मन्नत पूरा होने के बाद वह इस धॉंगे को समारोह कर खोलते हैं।
वनराज-गर्भगृह के सामने सीढ़ीयाें के बगल में दोनो तरफ धातु के बने हुए दो सिंहों की प्रतिमा स्थापित है। माँ के दर्शन उपरान्त भक्त वनराज को प्रणाम करना नहीं भूलते।