सत्‍य घटनाएं

वैसे तो मॉं कामाख्‍या का आशीर्वाद अपने सभी भक्‍तों पर बराबर रहता है। लेकिन कहॉं जाता है न कि मॉं सबसे तो प्‍यार करती है लेकिन अपने पुत्र से उसका लगाव कुछ अधिक ही होता है। वह अपने प्‍यार का कुछ अधिक हिस्‍सा अपने पुत्रों को देती है। उसकी प्रकार मॉं कामाख्‍या के द्वारा भी अपने स्‍थानीय पुत्रों पर कुछ विशेष कृपा रहती है।

युद्ध भूमि में मॉं – मॉं कामाख्‍या की कृपा के यहॉं के सैनिकों पर विशेष रूप से रहती है। कहा जाता है कि जब भी युद्ध होता है मॉं मंदिर से अपना स्‍थान छोड़ कर युद्ध भूमि में अपने बच्‍चों की रक्षा करने उतर जाती है।बड़े से बड़े युद्ध में इस क्षेत्र का कोई जवान दुश्‍मन की गोली से नहीं मरता। चाहे वह विश्‍व प्रथम व द्वितीय विश्‍व युद्ध हो या फिर पाक व चीन के साथ युद्ध हो। यही कारण है कि सीमा पर जाने से पहले व आने के बाद इस क्षेत्र का हर सैनिक मॉं कामाख्‍या के दर्शन करना नहीं भूलता।

साक्षात अनुभव- गहमर के पट्टी मधुकराव के एक सिपाही जगदीन नारायण सिंह शां‍ति सेना का हिस्‍सा बन कर श्रीलंका गये थे। कोलंम्‍बों के निकट उनकी टुकड़ी पर लिट्टे का हमला हो गया। सारे सैनिक तीतर-बितर हो गये। घंटो युद्ध चला। तभी उनके पास एक भयानक बम विस्‍पोट हुआ और एक पत्‍थर उड़ कर उनके गर्दन में आकर लग गया। वह घायल होकर बालू में पड़ गये। कोई मदद मिलने की उम्‍मीद नहीं थी। कुछ देर बाद एक बुढ़ी औरत न जाने कहॉं से प्रकट हुई। उनका सर अपनी गोद में रख कर उनके ज़ख्‍माें को साफ किया , पानी पिलाई।तीन दिन तक वह औरत वही बैठी उनकी सेवा करती रही। तीन दिनों बाद जब उनको खोजते हुए उनके साथी वहॉं पहुँचे तो उनको वह बुढि़या दिखाई नहीं थी। वो बताते है कि महीनों इलाज के बाद वह स्‍वस्‍थ तो हो गये लेकिन यह पता नहीं चला कि उस भयानक लड़ाई के मैदान में वह बुढ़ी काया कौन थी। वो मानते हैं कि वह खुद मॉं कामाख्‍या थी जो उनको बचाने के लिए युद्ध भूमि में पहुँच गई थी।

गहमर रेलवे स्‍टेशन पर मॉं कामाख्‍या- बात 6 जनवरी 1987 की है। गहमर में टाउन एरिया तोड़ने के लिए सरकार एवं ग्रामवासियों के बीच लड़ाई चल रही थी। उस दिन गहमर रेलवे स्‍टेशन पर रेल रोको आन्‍दोलन था। एक ट्रेन आकर रूक गई। उसमें कुछ फोैजी और रेलवे सुरक्षा बल के लोग थे। गॉंव वालों और उनके बीच कहा-सुनी हो गई। बात इतनी बढ़ी सुरक्षा बलों ने गोलीयॉं चला दी। इतने में सबने देखा कि एक बूढ़ी औरत भी गॉंव वालों की तरफ से लड़ रही है। गॉंव के तीन लोगों को गोली लगी। कुछ लोगों ने उस बूढ़ी औरत को भी गोली लगते देखा। विवाद शांत होने के घायलों एवं मृतकों की खोज होने लगी। सब तो मिल गये मगर वह बुढ़ि‍या जो आगे आकर गोली अपने सीने पर खायी वह कही दिखाई नहीं दी। उसकी काफी खोज-बीन हुई मगर उसका पता आज तक नहीं चला कि वह कौन थी। लोगो का मानना है कि वह मॉं थी जो एक बार फिर अपना रूप बदल कर गॉंव वालों की सुरक्षा में उस जगह मौजूद थी।

जय मॉं कामाख्‍या