मॉं कामाख्या धाम में वैसे तो वर्ष भर विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम होते रहे हैं। लेकिन चैतीय एवं सावन माह में यहॉं विशेष आयोजन होते हैं। चैत माह के रामनवमी में यहॉं भव्य मेले का आयोजन होता है। इस मेले का मुख्य आकषर्ण अष्टमी की रात में होने वाले निशा पूजन एंव नवमी को होने वाला घुड़दौड़ है, जिसमें दूर-दूर के घुड़सवार हिस्सा लेते है। गहमर क्षेत्र में पैदा होने वाले प्रत्येक बच्चे का 3,5,7,9 वर्ष की आयु में मॉं कामाख्या धाम पर ही मुंड़न संस्कार होता है। दूर -दराज से लोग आकर यहॉं बने विवाह भवन में विवाह संस्कार कराते है।
मॉं कामाख्या धाम में होन वाले प्रमुख आयोजन एंव मेले
चैतीय नवरात्रि – मॉं कामाख्या धाम मंदिर में चैतीय नवरात्रि में मेले का आयोजन होता है।नौ दिन माँ की भव्य आरती, श्रृगांर होता है। अष्टमी की रात को निशा पूजन का कार्यक्रम हेता है। नवमी तिथि को मंदिर परिसर के विशाल हवन-कुण्ड में शाम तक हवन का कार्यक्रम होता है। इसी दिन परिसर में मेला लगता है पूरे परिसर में तिल रखने मात्र की जगह नहीं होती है। नवमी तिथि के माँ के मंदिर के पास कवीना मंत्री ओमप्रकाश सिंह के द्वारा घुडदौड़ प्रतियोगिता का आयेजन किया जाता है।इस अवसर पर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और बिहार के प्रसिद्व घुड़सवार हिस्सा लेते है। इस आयोजन को देखने दूर-दूर से लोग आते है। दोपहर में कुस्ती का कार्यक्रम होता है। यहॉं होने वाली कुश्ती को पूरे पूर्वांचल में काफी प्रसिद्व थी, लेकिन समय के साथ खेलों से रूझान कम होने से अब इस कुस्ती के आयोजन में स्थानीय पहलवान ही अखाड़े में पहुँचते हैं। इस दिन समाजसेवी संस्थानों द्वारा पूरे परिसर में जगह-जगह सेवा केन्द्र, प्याउ, मुफ्त शरबत के साथ-साथ भंडारे का भी आयोजित किये जाते हैं।
निशा पूजन- नवरात्रि में मॉं कामाख्या धाम में निशा पूजन का बहुत महत्व हैं। चैतीय एवं शरदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि इस पूजन का आयोजन होता है। निशा पूजन के लिए भक्त शाम से ही मंदिर परिसर में पहुँच कर अपना स्थान सुरक्षित कर लेते हैं। रात्रि 11 बजे के बाद मंदिर में सफाई इत्यादि के बाद मंदिर के मंहत द्वारा पूजन की तैयारी शुरू होती है। पूजन के पहले पूरे गर्भगृह को सजाया जाता है। दिव्य पूजन के बाद आरती होती है। सभी आरती लेते हैं उसके बाद महागौरी के रूप में मॉं कामाख्या की पूजा अर्चना करते हैं। यह कार्यक्रम देर रात तक चलता रहता है। निशा पूजन अष्टमी की रात्रि को ही होता है, यदि सप्तमी तिथि को मध्य रात्रि अष्टमी का प्रवेश हो जाता है तो सप्तमी की रात्रि को ही संम्पन्न होती है।
पूर्णमासी का मेला- माँ कामाख्याँ धाम में चैतीय पूर्णामासी को भव्य मेले का आयोजन होता है। आज के मेले की खासियत यह होती है कि आज का मेला औरतों के लिये लगता है। कहा जाता है कि चैतीय नवमी के दिन और माता पूजन एवं धार्मिक क्रिया-कलापो में व्यस्त रहती है इस कारण वह मॉं के दरबार में नही जा पाती है इस लिये वह पूर्णमासी को मॉं के दर्शन करती है और अपनी आवश्यकता की वस्तुये मेले से खरीदती है। आज भी यह मेला विशुद्ध रूप से ग्रामीण परिवेश के अनुसार लगता है।
श्रावणी मेला-माँ कामाख्याँ धाम में पूरे सावन मेले का आयोजन रहता है। जगह-जगह झाकियॉं, झूले इत्यादि लगाये जाते है। इस महा सुहागिन औरते मॉं को सिन्दूर आर्पित करती है । चढ़ाये हुए सिन्दूर को अपने सिन्होरा (लकड़ी का बना सिन्दूर रखने का एक पात्र)में रखती है और मॉं से प्रार्थन करती है कि मॉं उनको सदा सुहागिन रखे।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव – माँ कामाख्या मंदिर पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर दो दिनों तक कई कार्यक्रम आयोजित होते हैंं। गर्भगृह में श्री कृष्ण भगवान के बाल रूप की झॉंकी सजाई जाती है। रात्रि में विधि-विधान के साथ पूजन कर भक्तों को प्रसाद वितरण किया जाता है।
चौलकर्म कार्यक्रम- गहमर ही नहीं आस-पास के लोग भी अपने बच्चे का मुड़न संस्कार क्रमस: 3,5,7,9 वर्ष की आयु में मॉं कामाख्या के धाम पर ही कराते हैं। मॉं के दरबार में होने वाले चौलकर्म कार्यक्रम की छटा देखने लायक हेती है जगह-जगह रंग- बिरंगे कपड़े में उद्यम बचाते बच्चे,16 श्रंगार से सजी नव-विवाहिताए ,युवकतियां चारो तरह घुमते नजर आते है। पराम्परिक देवी गीत गाती और बैन्ड बाजे के धुन पर तिरकती परिवार के सदस्य और चाकू छूरे के डर से रोते मुड़न करते बच्चे । जगह- जगह लोग बैठ कर भोजन करते है। हर तरफ खुशीयों का माहौल हेता है।पूरे मंदिर परिसर में हर तरह मजमा लगा रहता है। लोग एक दूसरे की सेवा में लगे रहते है। चौलकर्म संस्कार में बच्चें के घर से लेकर गंगा के घाट एवं उसके घर पर उत्सव का माहौल होता है। चौलकर्म संस्कार मॉं कामाख्या धाम पर होने वाला विशेष संस्कार है।
वैवाहिक कार्यक्रम- मॉं कामाख्या के दरबार में रोज वैवाहिक कार्यक्रम का आयोजन होता है। अमीरी-गरीबी की परिपाटी से हट कर लोग मॉं कामाख्या के दरबार में अब विवाह संस्कार का आयोजन कर रहे हैं। मॉं कामाख्या मंदिर के पास ही कई टेंट हाउस, होटल, विवाह भवन, एवं दुकाने होने से विवाह संस्कार कराने वाले लोगो को काफी सुविधा मिलती है। विवाह संस्कार कराने से पूर्व मंदिर कार्यालय में विवाह का पंजीकरण करना अनिवार्य होता है।