महापर्व डाला छठ

महापर्व डाला छठ कार्तिक माह की शुक्‍ल पक्ष के चतुर्थी तिथि से आयोजित होकर सप्‍तमी तिथि को समाप्‍त होने वाला यह पर्व यूँ ही नहीं कहलाता है महापर्व। इसके महापर्व कहलाने के पीछे दर्जनों ऐसे कारण है जो इसे महापर्व की श्रेणी में सबसे ऊपर लाकर खड़ा कर देते हैं। सनातनी समाज का कोई ऐसा तबका नहीं है जो इससे न जुड़ा हो। अपने विधि-विधान, पूजन पद्वित, हास-परिहास, उत्‍सव जैसा माहौल, प्रकाश, सफाई क्‍या कुछ नहीं इसके अंदर। समाज का हर अंग इस पर्व में दोना हाथ बढ़ा कर सेवा के लिए तैयार रहता है। अमीरी-गरीबी का भेद मिटाते इस पर्व में एक गिरते को थामने के लिए हजारो हाथ उठ खड़े होते हैं। इस व्रत को करने वाली व्रती के घर यदि कोई नहीं है, तो भी उसे पता नहीं चलता कि कब उसका यह व्रत पूरा हो गया। संसाधन नहीं है तो हजारो हाथ खड़े है। सामाग्री नहीं तो भी हजारो हाथ खड़े हैं।
सर्वप्रथम यदि आपके पास संसाधन एवं धन नहीं है तो परेशान मत हो, यह पर्व पान-सुपाड़ी, दीपक, सिंदूर, कुछ फल एवं नये के जगह साफ कपड़े पहन कर भी किया जा सकता है। सनातन धर्म में सामान एवं विधि का महत्व भाव,श्रृद्धा और विश्वास से बहुत कम है। सूर्य देव एवं छठ माता के प्रति भाव-विश्वास रखें। सामान संसाधन आप तक खुद पहुॅंचेगा। सामान को भाव पर हावी मत होने दे, हसते रहें। सफाई का विशेष ध्यान रखें, गेहूॅं सुखाने से लेकर खरना के प्रसाद, शाम-सुबह के अर्ध्य तक के पूजन सामाग्री एवं प्रसाद को मानव तो मानव पशु-पक्षी तक को जूठा मत करने दें,पैर मत लगने दें। चारो दिन जमीन पर सोयें, सांसारिक बातो से दूर रहे, भगवान का ध्यान करते रहें।परिवार में किसी को लहसुन-प्याज, मॉंस-मदिरा, का सेवन मत करने दें।
अपने साथ साथ दूसरो के व्रत में भी यथा-संभव मदद/सहयोग करें, रास्ता बनाने, अर्ध्य देने, प्रकाश इत्यादि में सहयोग करें। यह आपको पुण्य का फल देगा।
खरना के दिन व्रती के भोजन करते समय किसी प्रकार की आवाज न होनें दें। वह आवाज जिस पर आपका वश नहीं है जैसे चलती रेल, यातायात, प्राकतिक आवाज का व्रती के भोजन पर प्रभाव नहीं पड़ता। व्रती के भोजन करते समय उनका नाम किसी भी प्रकार से उनके कान में नहीं जाना चाहिए, बच्चों को भी घर से बाहर कर लें।
सूपो की संख्या परिवार के पुरूष सदस्यों के संख्या के बराबर होती है।
शाम के अर्ध्य के समय जो फल-फूल-प्रसाद सूप में रहते हैं उसे सुबह के अर्ध्य के पहले अवश्य बदल लें, एक बार का चढ़ाया फल प्रसाद दुबारा नहीं चढ़ता।
अर्ध्य देते समय सूप में रखा दीपक जलता हुआ रहना चाहिए।
चैतीय नवरात्रि के बाद यदि परिवार में कोई मृत्यु हुई रहती है तो उस वर्ष छठ घर में नहीं होता है।
महिलाएं अपना पहला छठ अपने पीहर से ही शुरू करती हैं, लेकिन ऐसा कोई अति-आवश्यक नहीं है।
प्रसाद बनाने के लिए ऐसे चुल्हे का प्रयोग करें जिस पर कभी नमक का सामान या मांसाहार न बना हो, सबसे उत्तम मिट़्टी का चुल्हा व आम की लकड़ी होती है। प्रसाद में ठेकुआ, कचमनिया, चावल के लड़डू अवश्य बनायें।
विशेष- छठ महापर्व की कुछ परम्पराएं कुछ विधान हर जगह के अलग अलग होते हैं, इस लिए निसंकोच अपने क्षेत्र के बूढ़े-बुजुर्गो से बात कर जानकारी प्राप्त कर ही इस व्रत को करें। उत्तम रहेगा। गलत से पूछ अच्छी।


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